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मनाचे श्लोक – १९१ ते २०५

देहेबुेिचा निश्र्चयो ज्या टळेना | तया ज्ञान कल्पांतकाळी कळेना | पर ब्रध् ते मीपणे आकळेना | मनी शून्य अज्ञान हे मावळेना ||191|| मना ना कळे ना ढळे रूप ज्याचे | दुजेवीण ते ध्यान सर्वोत्तमाचे | तया खूण ते हीन दृष्टांत पाहे | तेथे संग निसंग दोनी न साहे ||192|| नव्हे जाणता नेणता देवराणा | न ये […]

मनाचे श्लोक – १८१ ते १९०

नव्हे चेटकी चाळकू दःव्यभोंदू | नव्हे निंदकू मत्सरू भक्तीमंदू | नव्हे उन्मतू वेसनी संगबाधू | जनी ज्ञानिया तोचि साधू अगाधू ||181|| नव्हे वाउगी चाऊटी काम पोटी | किःयेवीण वाचाळता तेचि मोठी | मुखी बोलिल्यासारिखे चालताहे | मना सदगुरू तोचि शोधूनि पाहे ||182|| जनी भक्त ज्ञानी विवेकी विरागी | कृपाळू मनस्वी क्षमावंत योगी | प्रभू दक्ष व्युत्पन्न […]

मनाचे श्लोक – १७१ ते १८०

असे सार साचार ते चोरलेसे | इही लोचनी पाहता दृश्य भासे | निराभास निर्गूण ते आकळेना | अहंतागुणे कल्पिताही कळेना ||171|| स्फुरे विषयी कल्पना ते अविद्या | स्फुरे ब्रध् रे जाण माया सुविद्या | मुळी कल्पना दो रूपे तेचि जाली | विवेके तरी सस्वरूपी मिळाली ||172|| स्वरूपी उदेला अहंकार राहो | तेणे सर्व आच्छादिले व्योम पाहो […]

मनाचे श्लोक – १६१ ते १७०

अहंतागुणे सर्वही दुःख होते | मुखे बोलिले ज्ञान ते व्यर्थ जाते | सुखी राहता सर्वही सूख आहे | अहंता तुझी तूचि शोधूनि पाहे ||161|| अहंतागुणे नीति सांडी विवेकी | अनीतीबळे श्र्लाघ्यता सर्व लोकी | परी अंतरी सर्वही साक्ष येते | पःमाणांतरे बुेि सांडूनि जाते ||162|| देहेबुेिचा निश्र्चयो दृढ झाला | देहातीत ते हीत सांडीत गेला | […]

मनाचे श्लोक – १५१ ते १६०

खरे शोधिता शोधिता शोधताहे | मना बोधिता बोधिता बोधताहे | परी सर्वही सज्जनाचेनि योगे | बरा निश्चयो पाविजे सानुरागे ||151|| बहूता परी कूसरी तत्वझाडा | परी पाहिजे अंतरी तो निवाडा | मना सार साचार तें वेगळे रे | समस्तांमधे येक ते आगळे रे ||152|| नव्हे पिंडज्ञाने नव्हे तत्वज्ञानें | समाधान कांही नव्हे तानमानें | नव्हे योगयागे […]

मनाचे श्लोक – १४१ ते १५०

म्हणे दास सायास त्याचे करावे | जनी जाणता पाय त्याचे धरावे | गुरूअंजनेवीण ते आकळेना | जुने ठेवणे मीपणे ते कळेना ||141|| कळेना कळेना कळेना ढल्íना | ढळे नाढळे संशयोही ढल्íना | गळेना गळेना अहंता गळेना | बळे आकळेना मिळेना मिळेना ||142|| अविद्यागुणे मानवा ddऊमजेना | भ्रमे चूकले हीत ते आकळेना | परीक्षेविणे बांधले दृढ नाणे […]

मनाचे श्लोक – १३१ ते १४०

भजाया जनी पाहता राम येकु | करी बाण येकु मुखी शब्द येकु | क्रिया पाहता उेरे सर्व लोकू | धरा जानकीनायकाचा विवेकु ||131|| विचारूनि बोले विवंचूनि चाले | तयाचेनि संतत्प तेही निवाले | बरे शोधिल्याविण बोलो नको हो | जनी चालणे शुे नेमस्त राहो ||132|| हरीभक्त वीरक्त विज्ञानरासी | जेणे मानसीं स्थापिले निश्चयासीं | तया दर्शनें […]

मनाचे श्लोक – १२१ ते १३०

महा भक्त प्रल्हाद हा कष्टवीला | म्हणोनी तयाकारणे सिंह जाला | न ये ज्वाळ वीशाळ संन्नीध कोणी | नुपेक्षी कदा देव भक्ताभिमानी ||121|| कृपा भाकिता जाहला वज्रपाणी | तयाकारणे वामनु चक्रपाणी | द्विजाकारणे भार्गवू चापपाणी | नुपेक्षी कदा देव भक्ताभिमानी ||122|| अहिल्ये सतीलागि आरण्यपंथे | कुढावा पुढे देव बंदी तयाते | बळे सोडिता घाव घाली निशाणी […]

मनाचे श्लोक – १११ ते १२०

हिताकारणे बोलणे सत्य आहे | हिताकारणे सर्व शोधूनि पाहे | हिताकारणे ब्ंाड पाखांड वारी | तुटे वाद संवाद तो हीतकारी ||111|| जनी सांगता ऐकता जन्म गेला | परी वादवेवाद तैसाचि ठेला | उठे संशयो वाद हा दंभधारी | तुटे वाद संवाद तो हीतकारी ||112|| जनी हीत पंडीत सांडीत गेले | अहंतागुणे ब्रहमराक्षस जाले | तयाहून व्युत्पन्न […]

मनाचे श्लोक – १०१ ते ११०

जया नावडे नाम त्या येम जाची | विकल्पे उठे तर्क त्या नर्क ची ची | म्हणोनि अती आदरे नाम घ्यावे | मुखे बोलता दोष जाती स्वभावे ||101|| अती लीनता सर्वभावे स्वभावे | जना सज्जनालागि संतोषवावे | देहे कारणी सर्व लावीत जावे | सगूणी अती आदरेसी भजावे ||102|| हरीकीर्तने प्रीति रामी धरावी | देहेबुध्दि नीरूपणी वीसरावी | […]

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